लेख- बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ क्यों है खतरनाक? भारतीय इकॉनमी,राजनीति और सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती

लेखिका:पूर्णिमा शर्मा
भारत में NH 44 की लंबाई श्रीनगर से कन्याकुमारी तक 4,110 किलोमीटर है। करीब इतना लंबा ही है भारत-बांग्लादेश का 4,096 किलोमीटर लंबा बॉर्डर। भारत-बांग्लादेश बॉर्डर जंगल, पहाड़ और नदियों के बीच से गुजरता है। बॉर्डर से अवैध बा

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लेखिका:पूर्णिमा शर्मा
भारत में NH 44 की लंबाई श्रीनगर से कन्याकुमारी तक 4,110 किलोमीटर है। करीब इतना लंबा ही है भारत-बांग्लादेश का 4,096 किलोमीटर लंबा बॉर्डर। भारत-बांग्लादेश बॉर्डर जंगल, पहाड़ और नदियों के बीच से गुजरता है। बॉर्डर से अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों का आना भारत के लिए सीमा पर सबसे गंभीर समस्या है।

सिलीगुड़ी कॉरिडोर

ये अवैध प्रवासी भारत की अर्थव्यवस्था, राजनीति, समाज और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन रहे हैं। ये बॉर्डर के इलाकों में तो बस ही चुके हैं बल्कि उत्तर-पूर्वी राज्यों के अलावा, दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु समेत देश के लगभग हर राज्य तक पहुंच चुके हैं। ऐसे लोगों का सिलीगुड़ी कॉरिडोर में बसना देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है, खासतौर पर जब चीन, पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश की नजदीकियां बढ़ रही हैं, जहां शेख हसीना को हटाए जाने के बाद कट्टरपंथियों के हौसले बढ़े हैं।

राजनीति पर असर

2003-04 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेशी घुसपैठिए देश में 25 लोकसभा सीटों और 120 विधानसभा सीटों पर प्रभावी भूमिका में हैं। रिपोर्ट में बताया गया था कि 2003 तक दिल्ली में 6 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए भारतीय पहचान पत्र हासिल कर चुके थे। लगभग यही स्थिति देश के कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में हो सकती है। अनुमान है कि अभी 3-5 करोड़ अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए भारत में रह रहे हैं। इनमें से कुछ गलत गतिविधियों में सक्रिय हो सकते हैं।

कट्टरपंथियों का कनेक्शन

साथ ही, यह भी देखा गया है कि कट्टरपंथियों के सत्ता में आने पर बांग्लादेश से अतीत में घुसपैठ बढ़ी है। 2001 में कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी जैसे दलों के सहयोग से BNP सत्ता में आई, तो भारत में घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियां बढ़ गई थीं। उस वक्त बांग्लादेश में आतंकवादी ट्रेनिंग कैंप तेजी से बढ़ने लगे थे। भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर पकड़े गए उग्रवादियों ने पूछताछ के दौरान, ईस्टर्न बॉर्डर के करीब इन कैंपों में कई बड़े आंतकवादी समूहों की मौजूदगी की पुष्टि भी हुई थी।

ISI का खेल

सितंबर 11, 2001 के बाद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने बांग्लादेश में आतंकी गतिविधियां और तेज कर दी थीं। 2002 में कोलकाता में कई ISI एजेंटों की गिरफ्तारी हुई थी, जो बांग्लादेश बॉर्डर पार कर भारत आए थे। तब भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने संसद में कहा था, ‘ढाका में पाकिस्तानी हाई कमिशन, ISI का नर्व सेंटर है, जो भारत के खिलाफ आंतकी गतिविधियों में लिप्त है।’ उन्होंने यह भी बताया था कि कई उग्रवादी संगठनों ने बांग्लादेश में ट्रेनिंग कैंप बना लिए हैं और बॉर्डर के करीब बड़ी संख्या में मदरसे भी बने हैं।

आतंकवादियों की सक्रियता

अक्टूबर 2002 में BSF ने बांग्लादेश में चल रहे 99 आतंकी ट्रेनिंग कैंपों की लिस्ट बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड्स को सौंपी थी। 2002 में बांग्लादेश में अल कायदा, रोहिंग्या और कट्टरपंथी ताकतों के नेक्सस की रिपोर्ट भी मिली। यह नेक्सस अमेरिका के अफगानिस्तान में एक्शन के बाद और मजबूत हुआ, अल कायदा के 150 आतंकवादियों ने बांग्लादेश में शरण ली। सबसे खतरनाक बात यह थी कि इन्हें बांग्लादेश में प्रशासन और आर्मी का सपोर्ट मिला। बांग्लादेश के कॉक्स बाजार इलाके में अल कायदा आतंकियों के मूवमेंट से भारत के लिए खतरा पैदा होने लगा। म्यांमार, चिटगांव और समुद्र के करीब होने से आंतकियों के लिए कॉक्स बाजार से कहीं भी जाना आसान था। इस इलाके में कई आतंकी संगठनों के कैंप की मौजूदगी भी रिपोर्ट हुई।

घुसपैठ में बढ़ोतरी

करीब 25 साल पहले, साल 2000 में भारत के गृह सचिव माधव गोडबोले ने भारत सरकार को एक बेहद महत्वपूर्ण रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें कहा गया था कि करीब 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि सालाना 3 लाख से ज्यादा बांग्लादेशी अवैध तरीकों से भारत में घुसते हैं। पिछले 25 सालों में इनकी संख्या तेजी से बढ़ी ही है।

सिन्हा ने चेताया

असम के गवर्नर रहे एसके सिन्हा ने 1998 में भारत के राष्ट्रपति को सौंपी एक रिपोर्ट में लिखा था कि जिस तेजी से अवैध बांग्लादेशियों की संख्या बढ़ रही है, एक समय ऐसा आ सकता है, जब वे ग्रेटर बांग्लादेश की मांग करने लगें। यानी ये कहें कि भारत के जिन इलाकों में अवैध बांग्लादेशियों की आबादी बढ़ गई है, उन्हें भी बांग्लादेश को सौंप दिया जाए। सिन्हा ने इस समस्या के राजनीतिक, सामाजिक और भौगोलिक खतरों से भी आगाह किया था।

बिचौलिए बेलगाम

बांग्लादेश और भारत की सीमा के करीब फर्जी आधार कार्ड और बाकी भारतीय पहचानपत्र बनाने वाले बिचौलियों की बात भी लगातार सामने आती रही है। इनसे पता चलता है कि कोई बांग्लादेशी बाद में भारत में दाखिल होता है, बिचौलिए पहले ही उसका फर्जी पहचानपत्र बनवा लेते हैं। ये सीमा के दोनों ओर मौजूद हैं। ऐसे में अवैध बांग्लादेशियों के लिए घुसपैठ करना आसान हो जाता है।

प्रशासन हो सक्रिय

दूसरी ओर, वीजा लेकर भी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी आते हैं, लेकिन उनमें कई वापस नहीं लौटते। साल 2023 में करीब 16 लाख बांग्लादेशी वीजा लेकर भारत आए थे। इनमें से कितने वापस गए? और कितने पासपोर्ट फाड़ कर गायब हो गए? इसे लेकर पूरे देश में आइडेंटिफिकेशन ड्राइव चलाने की जरूरत है। इसके अलावा, सभी राज्य सरकारों, खास तौर पर बॉर्डर से सटे राज्यों की पुलिस और जिला प्रशासन को घुसपैठियों को पकड़ने और इनके फर्जी पहचानपत्र बनाने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

बॉर्डर गाइडलाइंस

हालांकि 1974 में जब भारत- बांग्लादेश बॉर्डर गाइडलाइंस बनी थी, तब बांग्लादेश में माहौल बिल्कुल अलग था, तब शायद भारत को भी अंदाजा नहीं था कि बांग्लादेश में भारत के खिलाफ ऐसा माहौल होगा जैसा अब है, लिहाजा अब भारत-बांग्लादेश बॉर्डर गाइडलाइंस की समीक्षा की भी जरूरत है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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